Tuesday 26 January 2016

ऐसी सहिष्णुता को बनते देखना दुष्काल सा..

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सहिष्णुता, असहिष्णु और सम्प्रदायों के बीच खीच तान के चलते अजीब सा माहोल हो गया है हमारे देश का, कहने को तो लोग देश के प्रति अपने आप को बढ़ चढ़ कर निष्ठावान बताने से नहीं चूक रहे पर उनकी यह तथाकथित निष्ठा वास्तव में देश की समरसता को सिर्फ और सिर्फ नुकसान ही पहुँचा रही है । अपने धर्म पर रखी निष्ठा दूसरे धर्म के अनिष्ठ पर जाकर पूरी हो ऐसी सोच को सहिष्णुता की परिभाषा बनते देखना एक दुष्काल सा लगता है । 
देश की वर्तमान स्थिती को बयां करता एक आर्टिकल छपा है बी.बी.सी. में परंजॉय गुहा का आर्थिक और राजनीतिक विश्लेषक हैं (माहौल ऐसे ही रहा तो विकास का क्या होगा?https://t.co/p4mb6TPM1p) पर मुश्किल यह है की ऐसे तमाम बयांनामों को मोदी जी से दुश्मनी के रूप में दरसाया जा रहा है, ये मोदीजनो की सोच है । ऐसा होना मुमकिन था और हो भी रहा है पर मूडीज के ओपीनियन को सिरे से नकारती मोदी-संघ की सोच बहुतों के लिये एक अनापेक्षित प्रजातान्त्रिक झटके से कम नहीं । राजनीति में बहुत से ऐसे पहलू होते है जो आम लोगोँ की समझ से परे होते है पर धार्मिकता की ओट में सामाजिकता को बाँटना, ये तो नासमझ भी समझ जाता है..तो समझने को सिर्फ इतना ही रह जाता है कि अलग अलग बुद्धि के लोग इस पर किस तरह रियेक्ट करते है ... परिणाम सामने है, दम तोड़ती सहिष्णुता पर विडम्बना ये है की ऐसा मानने को कोई तैयार नहीं !
आज के युवा धर्म सहिष्णुता, असहिष्णुता, देशभक्ति और राजनीति को केंद्रित कर अपने अपने अजोबोगरीब तार्किक विश्लेषणों के साथ देश की वर्तमान स्थिति को जस्टिफाई करने हेतु टूट पड़े है । गर्म खून के साथ यही दिक्कत है , वो सिर्फ अपनी दलीलों और तर्कों को ही सही मानते हैं ,भूल गये वो की देश सामाजिक धार्मिक और राजनैतिक तानो बानो का बना वो मायाजाल है जिसमे टॉलरेन्स वेल्यू का सबसे महत्वपूर्ण रोल है । सड़क पर हर कहीँ लिखा रहता है "वाये तरफ से चलिए" पर प्रैक्टिकली ये हर समय संभव नहीं होता , गड्ढ़े या गाड़ी खड़े होने पर हमें इस इथिकल नियम को तोड़ दायें चलना ही पड़ता है और यही वो टॉलरेंस वेल्यु है जो देश की हर दिशा और दशा में लागू हो बुने हुए इन तानों बानो को खीच कर देश को संतुलित रखती है । 
मैने पहले भी अपने लेख में कहा है की ये धर्म, वर्ग और स्तर की जो दीवारें हैं इन राजनेताओं की राजनीतिक जरूरतें है और इन दीवारों के इस पार से उस पार और फिर इस पार आना जाना इनकी काबलियत , अब ये काबलियत कारगर कैसे हों ? वर्तमान माहोल पर सत्तारूढ़ सरकार कहती तो नज़र आती है की क्या पिछली सरकारोँ में ये सब नहीं हुआ ?
सफाईगोशी में ही सही एक प्रकार से उनकी यह परोक्ष स्वीकृति ही हुई कि कुछ तो गलत हो रहा है यहाँ , पीछे ये सब हुआ तो जरूर पर अंतर है तब और अब में , तबकी सत्ता ने इन दीवालों में अपनी सुबिधा से आनेजाने के लिये सिर्फ गड्ढ़े ही किये थे वर्तमान सत्ता ने तो इसे वाल क्लाइम्बिंग में बदल ना सिर्फ खेल बना दिया बल्कि अपने जनों को ही समर्पित कर दिया इस खूनी खेल को । एक कहावत है गांवों में , दाई से तो चार महीने का पेट भी नहीं छिपता पर यहाँ सत्तारुढ़ तो पूरे समय का पेट सपाट दिखाने को प्रयासरत हैँ ।
सहिष्णुता, असहिष्णुता पर सत्ता और देशवासियो के वर्तमान हालात को मैने इस ब्लॉग के द्वारा एक दिशा देने की कोशिश की है पर बी.बी.सी. के उस समाचार को पढ़े वगैर यह ब्लॉग अधूरा ही रहेगा । इसलिए निवेदन है की लिंक में समाचार को पढ़ें जरूर ।

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